सुबह का इंतजार
रात की कािलमा भी करती है
क्या वो भी
अंधेरों से डरती है?
िसतारों भरी नीली चादर तानकर
जब सूरज सोता है,
तब वो भी क्या हज़ारो की भीड़ में
तनहा होता है?
दूर पहाड़ी से आँख मलते हुए
जब सूरज उगता है
तो क्या उसकी भी आँखों को
सूरज चुभता है?
सरसराती पत्तों को जब
हवा उडाती है,
तो क्या उसको भी
िकसी की याद आती है?
रिमझिम बारिश की फुहारें
जब अंतस को िभगाती हैं,
तो क्या बारिश की बूँदें भी
कुछ गुनगुनाती हैं?
जब मेघ के बादल घुमड़ते हैं,
तो क्या उसके मन में भी
कई सवाल उमड़ते हैं?
– गोपाल के.
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