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Tuesday, September 10, 2013

कविता -- "हिंदी"





खुद की दशा पर
वो रो रही थी
आंसुओं से दामन
भिगो रही थी
तिरस्कृत, उपेक्षित,
और लाचार सी थी
शायद ग़म से
बीमार सी थी।
आवाज़ रुंधी हुए और
गला भर्राया था
वो एक माँ थी
जिसे बेटों ने भगाया था।
खुद की हालत पर
वो तरस खाए भी तो कैसे?
अपनी बेबसी किसी को
वो बताये भी तो कैसे??
गलतियों को माफ़ करना ही
शायद उसकी भूल थी,
तभी आज वो फांक रही
दर ब दर की धूल थी।
पर हिम्मत न हारी वो
तूफानों से ना डरती है
ये अपनी हिंदी माता है
जो अब भी अंग्रेजों से लडती है।
अपनी गौरव गाथा को
अंग्रेजी से नहीं मिटाना है,
हम सबको क्रांति लाना है
हिंदी को मान दिलाना है।।

– गोपाल के.

Saturday, December 29, 2012

क्या होता?



क्या होता?
अगर इस दामिनी की जगह 
सरकार के 
किसी बड़े नेता की 
बहू या बेटी की 
इज्ज़त लुटी होती 
क्या होता तब?
अगर वो 
यूँ ही बेबस और लाचार 
ज़िन्दगी और मौत से जूझती 
अश्रु भरे नयनों से 
ये सवाल पूछती 
कि कब पकडे जायेंगे 
मेरे बलात्कारी?
मेरी अस्मत को 
सरे राह लूटने वाले 
मानवता के 
चीथड़े उड़ाने वाले 
कब मिलेगी उनको फांसी?
कब तक हम 
अपनी इज्ज़त यूँ ही 
गंवाती रहेंगी?
कब तक हम यूँ ही 
छेड़खानी सहेंगी?
आखिर कब तक?
शायद 
तब ना  इतनी देर होती 
ना  ही इतनी अंधेर होती 
अगर दामिनी की जगह 
किसी नेता की 
बहू  या बेटी होती 
तब तो शायद 
दूसरे दिन ही 
नया संशोधित क़ानून 
सर्वसम्मत से 
पास हो गया होता 
क्यूँ कि उस नेता की 
बहू  या बेटी से 
हर दल का नेता जुड़ा होता 
जैसे अपने वेतन की 
बढ़ोत्तरी के लिए 
हर दल का 
हर पक्ष का 
हर विपक्ष का 
नेता 
एक ही सुर में 
बोल रहा था 
ऐसे ही 
यहाँ भी सब नेता 
एक ही सुर में बोलते 
क्यूँ कि 
उनको भी अपनी 
बहू  बेटी की इज्ज़त 
प्यारी होती 
मगर दामिनी?
वो तो एक आम लड़की थी 
वो किसी नेता की 
बहू  या बेटी जो नहीं थी 
तभी तो उसे 
इन्साफ नहीं 
मौत नसीब हुयी 
वो भी ऐसी मौत 
कि  उसकी रूह 
तड़पती रहेगी 
जाने कब तक 
खुद पर हुए 
जुल्म के इन्साफ के लिए 
और फिर से 
ऐसे दुराचारी 
बिना किसी डर  के 
किसी और दामिनी की 
इज्ज़त तार-तार कर रहे होंगे 
और हमारे नेता 
अब अपनी बारी  का 
इंतजार कर रहे होंगे।

-गोपाल के .

Thursday, October 18, 2012

दो लाइन शायरी




1. उसने पुछा क्या हाल है जनाब..?
    मैंने बस इतना ही कहा - जिंदा हूँ..!!

2.  उजालों की रौशनी ने अँधेरे बुझा दिए,
     जब दिए अंधेरों ने जलाये तो रौशनी रो बैठी..

3.  तेरे शहर में भीड़ ही भीड़ थी बहुत,
     फिर भी पूरे शहर में मैं तो तन्हा था..

4.  मुझको रुलाना तो बहुत आसान है तेरे लिए
     पर चुप करा सको जो मुझे तो मानू मैं 
तुझे..!!


--गोपाल के.

अपनी चिता

ढलते सूरज को निहारती आँखें..
देख रही हो जैसे अपनी जलती चिता..!!

--गोपाल के.

YE MAI HU-- GOPAL

LOVE MATCH


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