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Tuesday, September 10, 2013

कविता -- "हिंदी"





खुद की दशा पर
वो रो रही थी
आंसुओं से दामन
भिगो रही थी
तिरस्कृत, उपेक्षित,
और लाचार सी थी
शायद ग़म से
बीमार सी थी।
आवाज़ रुंधी हुए और
गला भर्राया था
वो एक माँ थी
जिसे बेटों ने भगाया था।
खुद की हालत पर
वो तरस खाए भी तो कैसे?
अपनी बेबसी किसी को
वो बताये भी तो कैसे??
गलतियों को माफ़ करना ही
शायद उसकी भूल थी,
तभी आज वो फांक रही
दर ब दर की धूल थी।
पर हिम्मत न हारी वो
तूफानों से ना डरती है
ये अपनी हिंदी माता है
जो अब भी अंग्रेजों से लडती है।
अपनी गौरव गाथा को
अंग्रेजी से नहीं मिटाना है,
हम सबको क्रांति लाना है
हिंदी को मान दिलाना है।।

– गोपाल के.

Tuesday, April 24, 2012

गीत-मेरे हुजुर






आंसुओं को धार दो मेरे हुजुर,
गम को अपने मार दो मेरे हुजुर.
***
काटो गम की रात तुम चुपचाप से,
मिलते रहना तुम भी अपने आपसे,
आयेंगे अपने अच्छे दिन भी जरुर.
आंसुओं को धार दो मेरे हुजुर..
***
राह मुश्किल हो मगर चलना तो है,
ख्वाब टूटेंगे मगर पलना तो है,
धुंध में लगती है मंजिल भी दूर.
आंसुओं को धार दो मेरे हुजुर..
***
क्यूँ भला मुझको मिली ऐसी सजा?
दिन थे बहारों के मगर आई खिजा,
कोई बतलाये मुझे मेरा कसूर.
आंसुओं को धार दो मेरे हुजुर..


--गोपाल के.

Sunday, April 22, 2012

आंकलन (मजदूर दिवस पर)































तुम
वातानुकूलित कमरे में बैठकर
करते हो मेरा
आंकलन
और मापते हो
मेरी गरीबी
तुम्हे
कोई परवाह नहीं
कि हम
क्या पहनते हैं?
क्या खाते हैं?
हाड तोड़ मेहनत के बाद
हम बदले में
क्या पाते हैं??
ये हमारी खुद्दारी नहीं
बल्कि मजबूरी है
कि हम कतारों में नहीं दिखते
न राशन के
न गैस के
और न बेरोजगारी भत्ते के..
ना हमारा बी.पी.एल. कार्ड है
ना गैस कनेक्सन के पैसे
और ना ही हम
सरकारी बाबुओं की कोई
खिदमत ही कर सकते हैं,
हम तो बस जी रहे हैं
धरती पे बोझ की तरह
हाँ, हमारे घर
कोई बिल नहीं आता
ना बिजली का
ना फोन का
और ना ही हम
संसद के
किसी बिल का
हिस्सा होते हैं
हम तो वो हैं साहब
जो मर गया
तो विपक्षी दल
बवाल करते हैं
हमारे नाम पे
अपनी रोटियाँ सेंकते हैं
और सरकार
हमे मरने नहीं देती
वरना उनका
गरीबी का
चुनावी मुद्दा ही
ख़तम जो हो जायेगा..
और हमारे नाम पर
मलाई खा रहे
सरकारी सरकारी अफसरों के
बंगलों का
साजोसामान कैसे आएगा?
हमारे नाम पर
कई लोग
कमा खा रहे हैं
हमारा क्या है?
हम तो मुफलिसी में भी
हंसकर जिए जा रहे हैं..
शायद हमारी यही मुस्कान
इन बड़े लोगों को अखरती है
वो नोटों की गड्डियों पर भी
सो नहीं पाते
और हमे
फुटपाथ पे भी
चैन की नींद
कैसे पड़ती है?
ये तो आपलोग ही जानो साहब
आप कमाते हो
कुछ ज्यादा ही कमाते हो
तभी तो इधर उधर कर के
जैसे भी करके
इनकम टैक्स बचाते हो,
आपका सारा चैन
काली कमाई को बचाने में
उसे सुरक्षित जगह
खपाने में
लगा रहता है
गरीबी पर टैक्स नहीं लगता ना
तभी तो वो चैन से रहता है..
गरीब जियेगा या मरेगा
पर करेगा नरेगा
और देश का विकास करेगा
आप साहब लोग
देश का मेहनताना
यानि टैक्स चुराते हो
उल्टा मंहगाई बढ़ने का इल्जाम
हमारा ज्यादा खाना बताते हो?
हाँ, खाना तो असल में
हम गरीब ही खाते हैं
आप तो डॉक्टर की दवाईयों से ही
अपना पेट भर लेते हो
हम
रिक्शे वाले
ठेले वाले
या दिहाड़ी मजदूर हैं
हम हर हाल में जीते हैं
हम तो बस ठोकर खाते हैं
और गम के आंसू पीते हैं..
तुम चाहे टैक्स भरो ना भरो
पर हम गरीबों का आंकलन
हमे देख कर करो..!!

--गोपाल के.

Sunday, April 15, 2012

हाइकू -6




1-
दिल और
तमन्ना जुदा
बेबसी

2-
दिलजले
ये समय कि
मार थी

3-
मज़हबी
बंटवारा
चाल है

4-
कर गयी
पार सरहद
इक हवा

5-
औकात
मत दिखाना
आँसुओं


--गोपाल के.

Saturday, July 12, 2008

कहाँ खो गए?


वो राही नयी मंजिलों के,
कहाँ खो गए?
जो हमसफ़र थे,
वो बेवफा क्यों हो गए?

ढूंढता हूँ उनको,
आज तक मैं दर-ब-दर,
पता नहीं चला अब तक,
वो कहाँ को गए?

दिल में बस उनका ख्याल,
नींद आये क्यों मुझे?
मैं जागता हूँ रात भर,
वो तो होंगे सो गए॥!

दिल का हाल सुनाएँ किसे,
किसको रुला दें फिर से हम?
आये थे पोंछने जो आंसू,
साथ मेरे वो रो गए॥!!

--गोपाल के।
.
Wo Raahi nayi manzilon ke kahaan kho gaye?
Jo Humsafar the wo bewafa kyun ho gaye?

Dhoondhta hu unko aaj tak main dar-b-dar,
Pata nahi chalaa ab tak wo kahaan ko gaye?

Dil me bas unka khayaal neend aaye kyun mujhe?
Main jaagta hun raat bhar wo to honge so gaye॥!

Dil ka haal sunaayen kise kisko rulaa de fir se hum?
Aaye the ponchhne jo aansu sath mere wo ro gaye॥!!

--GOPAL

YE MAI HU-- GOPAL

LOVE MATCH


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