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Thursday, December 12, 2019

चाँदनी



भोर तक है जागती चाँद के संग चाँदनी,
अपने बदन पे ओढ़के चाँद का रंग चाँदनी।

रात भर चलती रही, संग रात भर जलती रही,
स्याह काली रात से करती रही जंग चाँदनी।।




--गोपाल के.






Thursday, July 10, 2008

अस्तित्व

सागर से मिलने को बहती
एक नदी से मैंने पुछा॥
तू ये बता--
अपना अस्तित्व खोकर
तू सागर में विलीन हो जाती है,
आखिर ऐसा करके,
तू क्या पाती है?
मचल कर
थोडा इठलाते हुए
नदी ने कहा मुस्कुराकर मुझे॥
प्यार में अपना अस्तित्व
बचता ही कहाँ है?
हम तो रंग जाते हैं
उसी रंग में,
जिस रंग में वो
रंगा रहता है॥
खोकर अपना रंग,
अपना कर उसका रंग-ढंग॥
हम भी उसी का
एक रूप हो जाते हैं॥
तभी तो उसे पा पाते हैं॥
मै भी सागर में विलीन होकर
उसमे खो जाउंगी,
सागर में समाकर
सदा के लिए
मैं सागर की हो जाउंगी॥!!

--गोपाल के

YE MAI HU-- GOPAL

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