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Friday, December 13, 2019

वक़्त का वक़्त




वक़्त मुझसे पूछता है
"कौन है तू?"
दे मेरा उत्तर
भला क्यों मौन है तू?

मुँह से निकला
"वक़्त का
मारा हुआ हूँ,
जीता सबसे
खुदसे मगर
हारा हुआ हूँ।"

वक़्त बोला मुझसे -
"मत हो तू उदास,
आऊँगा वक़्त होने पर
मैं तेरे भी पास।।"


--गोपाल के.




Thursday, December 12, 2019

बारिश में यादें

आज की बारिश

तुम्हारी 

याद लायी है,

और मैं

भीग रहा हूँ

तेरी यादों में

अभी तक..

ना मानो

तो आकर

खुद ही

देख लेना।।


--गोपाल के.


Friday, December 6, 2019

कुछ तो कहो

कुछ तो कहो
यूँ खामोश क्यों हो
भला
बुरा
गुस्सा
या जो भी चाहो
कह डालो,
मैं
सुनना चाहता हूँ तुम्हे,
तुम्हारे नाराजगी भरी
कोई बात ही सही,
वो गलती
जो मैंने की ही नहीं,
चाहे जो भी इल्ज़ाम दे दो,
पर खामोशी तोड़कर
मेरे बेचैन दिल को
आराम दे दो,
चुप ना रहो।
कुछ तो कहो।।


--गोपाल के.

Tuesday, November 19, 2019

तेरी याद

तेरी यादों के पतझड़ में
कई लम्हों की पत्तियाँ
टूट गयी दिल की शाखों से..

तुम ना आये ना पैगाम तेरा
बरसती रही बूँद बूँद शब भर
तड़प इन्तज़ार की आँखों से..


गोपाल के.

Tuesday, September 10, 2013

कविता -- "हिंदी"





खुद की दशा पर
वो रो रही थी
आंसुओं से दामन
भिगो रही थी
तिरस्कृत, उपेक्षित,
और लाचार सी थी
शायद ग़म से
बीमार सी थी।
आवाज़ रुंधी हुए और
गला भर्राया था
वो एक माँ थी
जिसे बेटों ने भगाया था।
खुद की हालत पर
वो तरस खाए भी तो कैसे?
अपनी बेबसी किसी को
वो बताये भी तो कैसे??
गलतियों को माफ़ करना ही
शायद उसकी भूल थी,
तभी आज वो फांक रही
दर ब दर की धूल थी।
पर हिम्मत न हारी वो
तूफानों से ना डरती है
ये अपनी हिंदी माता है
जो अब भी अंग्रेजों से लडती है।
अपनी गौरव गाथा को
अंग्रेजी से नहीं मिटाना है,
हम सबको क्रांति लाना है
हिंदी को मान दिलाना है।।

– गोपाल के.

Saturday, December 29, 2012

क्या होता?



क्या होता?
अगर इस दामिनी की जगह 
सरकार के 
किसी बड़े नेता की 
बहू या बेटी की 
इज्ज़त लुटी होती 
क्या होता तब?
अगर वो 
यूँ ही बेबस और लाचार 
ज़िन्दगी और मौत से जूझती 
अश्रु भरे नयनों से 
ये सवाल पूछती 
कि कब पकडे जायेंगे 
मेरे बलात्कारी?
मेरी अस्मत को 
सरे राह लूटने वाले 
मानवता के 
चीथड़े उड़ाने वाले 
कब मिलेगी उनको फांसी?
कब तक हम 
अपनी इज्ज़त यूँ ही 
गंवाती रहेंगी?
कब तक हम यूँ ही 
छेड़खानी सहेंगी?
आखिर कब तक?
शायद 
तब ना  इतनी देर होती 
ना  ही इतनी अंधेर होती 
अगर दामिनी की जगह 
किसी नेता की 
बहू  या बेटी होती 
तब तो शायद 
दूसरे दिन ही 
नया संशोधित क़ानून 
सर्वसम्मत से 
पास हो गया होता 
क्यूँ कि उस नेता की 
बहू  या बेटी से 
हर दल का नेता जुड़ा होता 
जैसे अपने वेतन की 
बढ़ोत्तरी के लिए 
हर दल का 
हर पक्ष का 
हर विपक्ष का 
नेता 
एक ही सुर में 
बोल रहा था 
ऐसे ही 
यहाँ भी सब नेता 
एक ही सुर में बोलते 
क्यूँ कि 
उनको भी अपनी 
बहू  बेटी की इज्ज़त 
प्यारी होती 
मगर दामिनी?
वो तो एक आम लड़की थी 
वो किसी नेता की 
बहू  या बेटी जो नहीं थी 
तभी तो उसे 
इन्साफ नहीं 
मौत नसीब हुयी 
वो भी ऐसी मौत 
कि  उसकी रूह 
तड़पती रहेगी 
जाने कब तक 
खुद पर हुए 
जुल्म के इन्साफ के लिए 
और फिर से 
ऐसे दुराचारी 
बिना किसी डर  के 
किसी और दामिनी की 
इज्ज़त तार-तार कर रहे होंगे 
और हमारे नेता 
अब अपनी बारी  का 
इंतजार कर रहे होंगे।

-गोपाल के .

Sunday, February 1, 2009

SAFED RANG

SAFED RANG
SHAANTI KA,
SATYA KA,
SAADGI KA PRATEEK HAI..
KYUn KI
SAFED RANG
UJAALE KA PARTEEK HAI..
WO UJALA
JO ANDHKAAR KO
DASS LETA HAI..
AGYAANTA KO
DOOR KAR DETA HAI..
MANN KE BHRAM KO
DOOR KAR
VISHWAAS JAGAATA HAI..
YAHI WO RANG HAI
JO SAB RANGOn KO BANAATA HAI..
SAARE RANG
ISI SE HAIn
SAAT RANG
INDRADHANUSH KE BHI
ISI SE HAIn
YE RANG ISHWAR KA HAI,
ISHWAR SATYA KA PRATEEK HAI..
AUR WO HAR JAGAH
SHANTI CHAAHTA HAI
SAFED RANG DUSHMAN HAI
HAR JHOOTHI BHRAANTI KA..
TABHI TO SAFED RANG
PRATEEK HAI SHAANTI KA..!!


--GOPAL K.[:)]

Thursday, October 23, 2008

SHAYAD




MUJHE PATA HAI,
MERA HAR GHADI HAR PAL
TUMHE SOCHNA BURA LAGTA HAI,
TUMHE YAAD KARNA,
TUMHARI BAATE KARNA
AB TUMHE BURA LAGTA HAI..
PAR MAI KYA KARU?
PYAR KIYA HAI MAINE,
KAISE BADAL LU KHUD KO TERI TARAH?
MAINE KOI MUKHAUTA TO NAHI LAGAYA THA NA..
JO UTAAR FEKU TUMHARI TARAH?
MERA TO ASLI CHEHRA YAHI THA
AUR YAHI RAHEGA..
MAI KHUD KO AUR IS PAGAL DIL KO
KAISE BADAL DU?
BE-INTEHAA PYAR KA NATEEJA
KYA YAHI HOTA HAI?
KYA PYAR JYADA HO
TO NAFRAT ME BADAL JATA HAI?
TUM HI TO AB KAHTI HO MUJHSE
KI JYADA MEETHA HONE PAR
CHEETIYAA LAG JAYA KARTI HAIn,
TO KYA TUMHARA PYAR AB CHEETI BAN GAYA HAI?
JO AB TA-UMAR CHUBHAN DETA RAHEGA MUJHE?
MAINE KYA GALAT KIYA TUMSE JYADA PYAR KAR KE?
MUJHE PYAR KI LAKSHAMAN REKHA KA PATA NA THA,
TUMHARI TARAH MUJHE PYAR KARNE KA DHANG BHI NAHI,
AUR SHAYAD MERE PYAR KA CHATAKH RANG BHI NAHI..
TUM MUJHSE DOOR JA KAR RAH SAKTI HO,
PAR MAI TERI YAADO KE BINA KAISE RAHU?
TUM NAHI HO TO TUMHARI YAADE HI SAHI..
KOI TO HAI WAFA NIBHANE KE LIYE,
SAB TERI TARAH TO NAHI HOTE NA?
BEECH SAFAR ME SATH CHHOD JANE KE LIYE..!!
TUMHE PYAR SE CHUBHAN HOTI HAI
AUR MUJHE
IN YAADO KE CHUBHAN SE PYAR HAI..
SHAYAD ISI KO TAQDEER KAHTE HAIN,
SHAYAD ISI KA NAAM SANSAAR HAI..!!
--GOPAL K.[:)]

Friday, August 29, 2008

शून्य होते हम


शून्य
यही दिया था ना भारत ने विश्व को?
फिर आज खुद शून्य क्यूँ हो रहा है खुद?

एक --

संवेदनाओं में शून्य..
अब नहीं दिखती किसी की तकलीफ?
या सड़क पर दुर्घटना का शिकार हुए
व्यक्ति को देखने में
तुम्हे रोमांच आने लगा है?
ये देखना चाहते हो-
कि मेरे सामने कोई कैसे मरता है?
तड़प-तड़प कर..
और कुछ महानुभाव तो
बहुत ही परम हो गये हैं
चैन, मोबाइल, घडी और पैसे ले कर भी
नहीं सुनते उसकी विनती..
ना समझ सकते हैं उसके दर्द को..
लूट कर चल देते हैं
अपने घरवालो को खुशिया देने..
क्या इतनी भीड़ में
एक आदमी भी खून से लथपथ पड़े
उस व्यक्ति को अस्पताल नहीं पंहुचा सकता?
क्या मै भी नहीं?
क्या तुम भी नहीं?

दो--

शून्य हो चुके हैं रिश्ते
क्या माँ-बाप?
क्या भाई बहन?
सब यार हो गये..
और यार रिश्तेदार हो गये..
मामा-मामी, चाचा-चाची..
सब अंकल आंटी बन गये
और उनके बच्चे
कजिन बन गये
सारे रिश्ते
एक ही नाम में सिमटने लगे..
अपनापन खोजते तो हैं हम
पर किसी को अपना कर
अपना बना कर देखा है कभी?
प्यार सब पाना चाहते हैं
प्यार लुटा कर देखा है कभी?
ये वो दौलत है
जो लुटा कर और भी
दौलत मंद हो जाता है..
ज्ञान कि तरह..
पर ज्ञान भी तो शुन्य हो गया है..
अमेरिका में बैठी दोस्त
क्या कर रही है वो पता है
पर पड़ोस में कौन रहता है
ये नहीं पता॥

तीन --

खुशियों में शून्य
झूठी हँसी हँसने लगे
और जो हँसता दिखा
उसको ऐसी बात बोल दी
कि उसका भी चेहरा अपने जैसा
मनहूस बना दिया..
खुद तो हँस सकते नहीं
दूसरे की ख़ुशी भी नहीं देख सकते।

चार --

संतुष्टि में शुन्य
अब संतोषी माँ की कृपा
शायद लोगो में कम हो गयी है
या वो हम सब से रूठ गयी हैं..
किसी को संतोष ही नहीं
और पहले?
३०० रूपये में पूरा परिवार
ख़ुशी से चलता था
आज?
३०,००० भी कम पड़ रहा है..
पहले इच्छाएँ कम थी,
अब संतुष्टि कम हो गयी..
संस्कृति से शून्य
अब किसी की फोटो से
अगर उसका चेहरा हटा दिया जाये
तो कोई बता ही नहीं सकता
कि ये फोटो किस देश के
व्यक्ति की है..
सब इंटरनेशनल हो चले हैं,
पर खुद की पहचान खो कर..
हम सभी शून्य से ही हैं
और शून्य होने की तरफ
हम कदम बढाये जा रहे हैं.

--गोपाल के.

किसका इंतजार ?


कितना खाली लगता है
ये दिल कभी-कभी,
बिलकुल खोखला सा..
किसी सूखे दीमक लगे पेड़ के
खोखले तने की तरह..
बिलकुल खाली सा
इतना कमजोर
कि तेज हवा के झोंके से भी
टूट कर गिर पड़े,
और इतना गहरा सन्नाटा
जैसे गहरे कुंए में
पानी की परछाई में
सिर्फ अपनी ही तस्वीर
जैसे चाँद से झांकता कोई
दिल के वीरानेपन को
देखने की कोशिश कर रहा हो
पर दूर से
बहुत दूर से..
पास आने से डरता होगा
वो भी
खुशियों की तरह
या शायद
बेपरवाह हो.
कुछ भी हो..
मुझे क्या?
मै तो तब भी तन्हा था
तन्हा दिल लिए
अब भी तन्हा ही रहूँगा
कौन आएगा दूर करने इसको?
अब तो रात हो चली है,
अपना साया तक साथ छोड़ चला,
तो अब क्या उम्मीद
और किसका इंतज़ार?

--गोपाल के.

Friday, August 15, 2008

मुझमे आग भर दो..

हे ईश्वर

मुझमे तू आग भर दे

या तो मै खुद जल जाऊँ

या जला कर ख़ाक कर दूँ

अपनी इस चुप्पी को

जो इतना सब कुछ सुनकर भी

अब तक खामोश है,

या अपनी इन नज़रों को,

जो सब कुछ देख कर भी

कहीं और मदहोश है..

या अपनी इस कलम को,


जिसने अपनी धार खो दी है..

या अपनी इस स्याही को,

जो अब मंहगाई पर रो दी है?

करने वाले के लिए कुछ भी नहीं मुश्किल,

और हम जैसों के लिए जाने कितनी बाधाएं

कितनी ही दिक्कतें और

कितनी मजबूरियां

सब हमारे लिए ही रास्ता रोके खड़ी हैं,

सोचता हूँ

क्या गाँधी, नेहरु, सुभाष,

खुदीराम या भगत सिंह

इन सब के पास कोई काम नहीं था

या इन्होने अपनी हर मज़बूरी,

हर बाधा, हर इच्छा का

हवन कर दिया था?

क्या इन्हें डर नहीं था मरने का?

या इनकी माताएं बेफिक्र थी

इनके फांसी पर झूल जाने पर भी?

कुछ नहीं,

बस वक़्त का फेर है,

तब इन माँओं के लिए पूरा देश बेटा था

आज के बेटे के लिए अपनी माँ ही गैर है..

जब उसके लिए माँ ही कुछ नहीं तो कैसी मिट्टी

कैसी मात्रभूमि?

और क्या माटी का कर्ज?

अब देश से ज्यादा

ईमान से ज्यादा

माँ से ज्यादा

पैसा जो हो गया है..

आखिर मंहगाई जो इतनी बढ़ गयी है..!

घर पहले,

देश के बारे में सोचने को तो

सौ करोड़ लोग हैं ही॥


यही सोच रहे हो क्या?

--गोपाल के.

Sunday, July 27, 2008

इंतज़ार एक नए विस्फोट का


क्या होगा?
इस विस्फोट के बाद?
सन्नाटा..
फिर से इंतजार
एक नए विस्फोट का..
मुझे भी इन्तेज़ार है..
बहुत ही बेसब्री से
उस विस्फोट का..
जब हर घर से निकलेंगे
भगत सिंह,
राजगुरु और
सुखदेव
तब
हर भगत सिंह की चाहत
रखने वाला

ये नहीं सोचेगा कि
भगत सिंह फिर से पैदा तो हो,
मगर हमारे नहीं
पडोसी के घर मे..
जब हर माँ
अपनी कोख में
एक भगत सिंह का सपना देखेगी
हर बाप
बेटे को भेजेगा
शहीद होने के लिए
मुस्कुराकर,
विजयी तिलक और
गले लगा कर..
और हर भारतवासी
समझेगा अपने दायित्व को
तब
तब शायद इन आतंकियों के हौसले
हमारे आगे पस्त पड़ जाएँ
तब
तब शायद सारे भेड़
एक साथ मिल कर
इस भेडिये से लड़ जाएँ
तब
एक अकेला चना
भाड़ भले ही ना फोड़ पाए
पार शायद हम-में से एक
सिर्फ एक
माचिस की एक ही तीली
आतंक को ख़ाक कर दे..
और
हम सबकी बुजदिली को
जला कर राख कर दे॥!!




--गोपाल के.

Thursday, July 10, 2008

अस्तित्व

सागर से मिलने को बहती
एक नदी से मैंने पुछा॥
तू ये बता--
अपना अस्तित्व खोकर
तू सागर में विलीन हो जाती है,
आखिर ऐसा करके,
तू क्या पाती है?
मचल कर
थोडा इठलाते हुए
नदी ने कहा मुस्कुराकर मुझे॥
प्यार में अपना अस्तित्व
बचता ही कहाँ है?
हम तो रंग जाते हैं
उसी रंग में,
जिस रंग में वो
रंगा रहता है॥
खोकर अपना रंग,
अपना कर उसका रंग-ढंग॥
हम भी उसी का
एक रूप हो जाते हैं॥
तभी तो उसे पा पाते हैं॥
मै भी सागर में विलीन होकर
उसमे खो जाउंगी,
सागर में समाकर
सदा के लिए
मैं सागर की हो जाउंगी॥!!

--गोपाल के

Wednesday, July 2, 2008

दर्द

दर्द तब तक ही दर्द देता है..
जब तक हम उसे
पराया समझते हैं..
जब उसे सहते सहते..
उसके आदी हो जाते हैं
तो वही दर्द हमे
प्यारा भी लगने लगता है..
क्यूंकि..
वो दर्द बेवफा तो नहीं होता..
खुशियों की तरह..
जो जरा जरा सी बात पर
रूठ जाती है..
चली जाती है
तन्हा छोड़ कर..
बिलकुल तन्हा..
जहां अपनी परछाई भी
साथ न दे..
ऐसे अन्धकार में
धकेल कर..
कब तक?
आखिर कब तक भागूं ?
इन खुशियों के पीछे..??
जो हमे देख कर भी रहती है..
अपनी आँखें मीचे..
इन खुशियों से अच्छी तो
ये दर्द हैं..
जो बिना बुलाये आ जाती हैं..
वो भी
अपने पुरे परिवार के साथ..
निभाने को साथ
दिन हो या रात..
जो कभी बेवफाई तो नहीं करती
दिल में आबाद रहती है..
शायद जिंदगी भी यही कहती है..
कि सुख दुःख तो
जीवन का अंग है..
सबके अपने-अपने
जीने का ढंग है..
कहीं अँधेरा कहीं उजाला
यही तो
जिंदगी का रंग है॥!!


--गोपाल के.

Monday, June 30, 2008

MAI HU NETA


Logon ko Bhadkaata hu,
Aapas me Ladwaata hu;
Unki Dhan-Sampatti lekar,
Fir mai Mauj manaata hu..

Gaban kar ke Sarkaar ki,
Aankhon me Dhool Udaata hu;
Gehu, Chaawal, Daal Dabaakar,
Mahage Daam Kamaata hu..

Badh gayi hai Aabadi Desh ki,
Dange kar ke Marwaata hu;
Swaarth Siddh karne ko Apni,
Logon ki Balee Chadhaata hu..

Tikdam se Kurshi karta Haasil,
Sabki Sarkaar giraata hu;
Acting me bhi mai hu Maahir,
Ghadiyaali Aansu bahaat hu..

Kale Kartooton ki Kaalikh lagne par,
Noton se Daag Chhudaata hu;
Mai hu NETA tere DESH ka,
Tum sab par Raaj chalaata hu..


GOPAL K


BASANT


Aaya Basant Ritu Paawan,
Lekar sang madmast Saawan..

Baagon pe chha gayi Bahaar,
Saajan ka banu mai Pyaar..

Jhoola dalo Ri Sakhiyaan,
Kabse tarse thi Ankhiyaan..

Bachpan ke din aaye Yaad,
Mili Sakhee Dino ke baad..

Badhaa Paig Jhoola jhoolein,
Hum tum is Nabh ko chhu lein..

Yaad reh jaye ye Saawan,
Naachu itna karta Mann..

Odhee mai Dhaani Chunri,
Bole Koyal tu Sun Ri..

‘Pihoo-Pihoo’ Panchhi bole,
Piya Naam sun Mann dole..!!


GOPAL K.

YE MAI HU-- GOPAL

LOVE MATCH


Hi5 Cursors