खुद की दशा पर
वो रो रही थी
आंसुओं से दामन
भिगो रही थी
तिरस्कृत, उपेक्षित,
और लाचार सी थी
शायद ग़म से
बीमार सी थी।
आवाज़ रुंधी हुए और
गला भर्राया था
वो एक माँ थी
जिसे बेटों ने भगाया था।
खुद की हालत पर
वो तरस खाए भी तो कैसे?
अपनी बेबसी किसी को
वो बताये भी तो कैसे??
गलतियों को माफ़ करना ही
शायद उसकी भूल थी,
तभी आज वो फांक रही
दर ब दर की धूल थी।
पर हिम्मत न हारी वो
तूफानों से ना डरती है
ये अपनी हिंदी माता है
जो अब भी अंग्रेजों से लडती है।
अपनी गौरव गाथा को
अंग्रेजी से नहीं मिटाना है,
हम सबको क्रांति लाना है
हिंदी को मान दिलाना है।।
वो रो रही थी
आंसुओं से दामन
भिगो रही थी
तिरस्कृत, उपेक्षित,
और लाचार सी थी
शायद ग़म से
बीमार सी थी।
आवाज़ रुंधी हुए और
गला भर्राया था
वो एक माँ थी
जिसे बेटों ने भगाया था।
खुद की हालत पर
वो तरस खाए भी तो कैसे?
अपनी बेबसी किसी को
वो बताये भी तो कैसे??
गलतियों को माफ़ करना ही
शायद उसकी भूल थी,
तभी आज वो फांक रही
दर ब दर की धूल थी।
पर हिम्मत न हारी वो
तूफानों से ना डरती है
ये अपनी हिंदी माता है
जो अब भी अंग्रेजों से लडती है।
अपनी गौरव गाथा को
अंग्रेजी से नहीं मिटाना है,
हम सबको क्रांति लाना है
हिंदी को मान दिलाना है।।
– गोपाल के.
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