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Friday, December 13, 2019

यादें




ये तन्हाई
ये बेचैनी
और साथ देने को
बस पुरानी यादें
दिल पर बस चलता है
और न ही दिमाग पर
बस चलता है तो यादो पर
जो तडपती हैं आकर..
मै तो नहीं बुलाता
इन यादों को अपने पास
फिर क्यूँ आ जाती हैं ये
देख कर मुझे उदास?
शायद ये तनहा देख कर मुझे
साथ देने आ जाती हैं
हाँ, ये बेवफा नहीं हैं
तुम्हारी तरह
झूठी नहीं हैं
तुम्हारे वादों की तरह
टूटती नहीं हैं
तुम्हारी कसमो की तरह
सिर्फ इन्हें थोडा सा
वक़्त ही तो चाहिए
नहीं चाहती धन दौलत
और न तन्हाई
ये तो कही भी आ सकती हैं
कहीं भी जा सकती हैं
बिना किसी रोक टोक के
और बिना किसी के इज़ाज़त के..
क्यूंकि ये किसी को तनहा नहीं देख सकती..
यादें हैं न..!
इन्हें किसी ने बेवफाई नहीं सिखाई
तभी ये बावफा हैं
और हमसफ़र हैं
हमारी जिंदगी की
ताउम्र .. ताजिंदगी..!!

–गोपाल के


Monday, May 7, 2012

तेरी ममता को सलाम





















माँ तू क्या है?
किस मिटटी की बनी है तू?
क्यूँ इतना भार सह लेती है?
क्यूँ हँस कर
हर गम सह लेती है?
हमे सुलाने की खातिर तू,
क्यूँ जगती है रात-रात भर?
क्यूँ खुद भूखी रह कर भी
हम बच्चों का भरती पेट?
क्यूँ अपने अरमानों का दम घोंटकर
बच्चों की ख्वाहिश करती पूरी?
क्यूँ सहती है तू इतना कुछ?
क्या क्रोध नहीं आता है तुझको?
लाख ग़मों से घिरी हो फिर भी
बच्चों का हँसना भाता है तुझको..
किस मिटटी से बनी है माँ तू?
इतना बड़ा दिया किसने दिल?
क्यूँ राम भी चाहें तेरा पालना
क्यूँ कान्हा तेरी कोख में आये?
क्या है तेरे इस आँचल में?
जो हर भय को दूर भगाए?
तेरी ममता की जग कायल
आंसू तेरे बने गंगाजल
तू अमृत के खान के जैसी
तू धड़कन या जान के जैसी
तुने दिया मुझे इक नाम
तेरी ममता को सलाम
तेरी ममता को सलाम

--गोपाल के.






Tuesday, April 24, 2012

गीत-मेरे हुजुर






आंसुओं को धार दो मेरे हुजुर,
गम को अपने मार दो मेरे हुजुर.
***
काटो गम की रात तुम चुपचाप से,
मिलते रहना तुम भी अपने आपसे,
आयेंगे अपने अच्छे दिन भी जरुर.
आंसुओं को धार दो मेरे हुजुर..
***
राह मुश्किल हो मगर चलना तो है,
ख्वाब टूटेंगे मगर पलना तो है,
धुंध में लगती है मंजिल भी दूर.
आंसुओं को धार दो मेरे हुजुर..
***
क्यूँ भला मुझको मिली ऐसी सजा?
दिन थे बहारों के मगर आई खिजा,
कोई बतलाये मुझे मेरा कसूर.
आंसुओं को धार दो मेरे हुजुर..


--गोपाल के.

Sunday, April 22, 2012

आंकलन (मजदूर दिवस पर)































तुम
वातानुकूलित कमरे में बैठकर
करते हो मेरा
आंकलन
और मापते हो
मेरी गरीबी
तुम्हे
कोई परवाह नहीं
कि हम
क्या पहनते हैं?
क्या खाते हैं?
हाड तोड़ मेहनत के बाद
हम बदले में
क्या पाते हैं??
ये हमारी खुद्दारी नहीं
बल्कि मजबूरी है
कि हम कतारों में नहीं दिखते
न राशन के
न गैस के
और न बेरोजगारी भत्ते के..
ना हमारा बी.पी.एल. कार्ड है
ना गैस कनेक्सन के पैसे
और ना ही हम
सरकारी बाबुओं की कोई
खिदमत ही कर सकते हैं,
हम तो बस जी रहे हैं
धरती पे बोझ की तरह
हाँ, हमारे घर
कोई बिल नहीं आता
ना बिजली का
ना फोन का
और ना ही हम
संसद के
किसी बिल का
हिस्सा होते हैं
हम तो वो हैं साहब
जो मर गया
तो विपक्षी दल
बवाल करते हैं
हमारे नाम पे
अपनी रोटियाँ सेंकते हैं
और सरकार
हमे मरने नहीं देती
वरना उनका
गरीबी का
चुनावी मुद्दा ही
ख़तम जो हो जायेगा..
और हमारे नाम पर
मलाई खा रहे
सरकारी सरकारी अफसरों के
बंगलों का
साजोसामान कैसे आएगा?
हमारे नाम पर
कई लोग
कमा खा रहे हैं
हमारा क्या है?
हम तो मुफलिसी में भी
हंसकर जिए जा रहे हैं..
शायद हमारी यही मुस्कान
इन बड़े लोगों को अखरती है
वो नोटों की गड्डियों पर भी
सो नहीं पाते
और हमे
फुटपाथ पे भी
चैन की नींद
कैसे पड़ती है?
ये तो आपलोग ही जानो साहब
आप कमाते हो
कुछ ज्यादा ही कमाते हो
तभी तो इधर उधर कर के
जैसे भी करके
इनकम टैक्स बचाते हो,
आपका सारा चैन
काली कमाई को बचाने में
उसे सुरक्षित जगह
खपाने में
लगा रहता है
गरीबी पर टैक्स नहीं लगता ना
तभी तो वो चैन से रहता है..
गरीब जियेगा या मरेगा
पर करेगा नरेगा
और देश का विकास करेगा
आप साहब लोग
देश का मेहनताना
यानि टैक्स चुराते हो
उल्टा मंहगाई बढ़ने का इल्जाम
हमारा ज्यादा खाना बताते हो?
हाँ, खाना तो असल में
हम गरीब ही खाते हैं
आप तो डॉक्टर की दवाईयों से ही
अपना पेट भर लेते हो
हम
रिक्शे वाले
ठेले वाले
या दिहाड़ी मजदूर हैं
हम हर हाल में जीते हैं
हम तो बस ठोकर खाते हैं
और गम के आंसू पीते हैं..
तुम चाहे टैक्स भरो ना भरो
पर हम गरीबों का आंकलन
हमे देख कर करो..!!

--गोपाल के.

Monday, April 16, 2012

फ़िल्मी क्षणिका




faagun


1-
"फागुन" में वेलेंटाइन       
 अप्रैल में "अप्रैलफूल" हैं हम,
"गरम हवा" के "मौसम" में
"क्या सुपर कूल हैं हम" !!


2-
"कसम से कसम से"
 "आये दिन बहार के"
"क़यामत से क़यामत तक"
"हम हैं रही प्यार के"




--गोपाल के.

क्षणिका





1-
हिन्दू, मुस्लिम,
सिक्ख, इसाई,
सबको डस गयी
ये मंहगाई.

2-
क्षण में फूंक दे
खुद को भी
आक्रोश

3-
तुम्हारी व्यथा
मन की कथा
तुम्हारी जुबानी
मेरी कहानी

4-
धर्मार्थ हो,
परमार्थ हो,
इसमें न कोई
स्वार्थ हो.

5-
हार गया
पहलवान
समय बड़ा
बलवान

--गोपाल के.

Friday, April 13, 2012

हाइकू


1-
हाथ की
बदली किस्मत
हाथ ने


2 -
साइकिल,
हाथी, हाथ
गिराओ

3-
तू बता
कैसा रहा ?
हे सखी !



4-
दीवार
खड़ी है अब
दिलों में


5-
सफलता
मिलेगी तो
विश्वास से

--गोपाल के.

हाइकू


1-
बेराह
चलता रहा
मुसाफिर

2 -
दुःख हरो
विनती सुनो
रामजी

3-
कन्हैया
माखनचोर
दुःख चुरा

4-
नवरात्री
माँ अम्बे की
वंदना

5-
खामोश
जल के मरा
बेवफा

--गोपाल के.



हाइकू



1-
दिल कई
लेकिन जज्बात
एक मिले

2-
अब दुश्मन
जो थे कभी
हमसफ़र

3-
पटरियां
मिलती नहीं
रेल की

4-
मजबूर
बेबस, दुखी
मजदूर

5-
भोर तक
थी कालिमा
रात की.

--गोपाल के.





Tuesday, April 10, 2012

हे कृष्ण कन्हैया


हे कृष्ण कन्हैया
मुरली बजैया
सुन रे माखनचोर
इस धरती का पाप मिटाने
फिर आजा रे रणछोड़
पतित पावनी गंगा मैली
यमुना करे पुकार
आ जा फिर यमुना के तीरे
कर सबका उद्धार
गीता का ज्ञान दिया तुमने
नारी को मान दिया तुमने
बचपन के सखा सुदामा को
क्या-क्या ना दान दिया तुमने
कई द्रौपदी हैं आज यहाँ
कई राधा हैं कई भामा हैं
हमको भी गले लगा ले मोहन
हम भी तेरे सुदामा हैं
डूब रहे हैं बीच भंवर में
आकर के उद्धार करो
बहुत बढ़ गए पापी जग में
अब आकर संहार करो..!!

--गोपाल के.

उम्मीद की किरण



स्याह रातों के अंधेरों में
भटकती आत्मा की तरह
ज़िंदगी मेरी
जाने कहाँ
किस दिशा में
लिए जा रही है,
ना कोई मंजिल
ना साथी
और ना हमसफ़र कोई..
साथ है तो बस
तन्हाई मेरी
गिरता हूँ
फिसलता हूँ मैं
खाता हूँ ठोकरें
फिर भी
हाथ थामे
हौसलों का
बस यूँ ही चलता हूँ मैं.
दिखी थी कभी
एक उम्मीद की किरण
जिसने किया प्रेरित
मुझे आगे बढ़ने का
और मैं
उसी उम्मीद की
किरण के सहारे
चला जा रहा हूँ
अपनी मंजिल की तलाश में

–> गोपाल के.

Monday, April 9, 2012

यादें




ये तन्हाई
ये बेचैनी
और साथ देने को
बस पुरानी यादें
दिल पर बस चलता है
और न ही दिमाग पर
बस चलता है तो यादो पर
जो तडपती हैं आकर..
मै तो नहीं बुलाता
इन यादों को अपने पास
फिर क्यूँ आ जाती हैं ये
देख कर मुझे उदास?
शायद ये तनहा देख कर मुझे
साथ देने आ जाती हैं
हाँ, ये बेवफा नहीं हैं
तुम्हारी तरह
झूठी नहीं हैं
तुम्हारे वादों की तरह
टूटती नहीं हैं
तुम्हारी कसमो की तरह
सिर्फ इन्हें थोडा सा
वक़्त ही तो चाहिए
नहीं चाहती धन दौलत
और न तन्हाई
ये तो कही भी आ सकती हैं
कहीं भी जा सकती हैं
बिना किसी रोक टोक के
और बिना किसी के इज़ाज़त के..
क्यूंकि ये किसी को तनहा नहीं देख सकती..
यादें हैं न..!
इन्हें किसी ने बेवफाई नहीं सिखाई
तभी ये बावफा हैं
और हमसफ़र हैं
हमारी जिंदगी की
ताउम्र .. ताजिंदगी..!!

–गोपाल के

भरोसा


बहुत वक़्त लगता है

किसी का भरोसा बनाने में
और एक क्षण भी नहीं लगता
इसे टूट जाने में..
ये वो दौलत है
जो हमेशा
संभाल कर रखना चाहिए
क्यूँ कि
भरोसा ही वो दौलत है
जिस से कोई भी जंग
कोई भी मुसीबत
आप पार कर सकते हैं
दिल में हौसला हो
और खुद पर भरोसा हो
तो इंसान क्या नहीं जीत सकता ?
भरोसा होना ही चाहिए
खुद पर,
दोस्तों पर
और अपने चाहने वालों पर..
क्यूंकि भरोसे कि नींव ही
जिंदगी कि इमारत को
मजबूत बनाती है..
बिना भरोसे के ये
टूट जाती है..
जिंदगी कि सारी मेहनत पर
फिर जाता है पानी
आखिर क्यूँ?
क्षण भर की गलती की सज़ा
पूरी जिंदगी भुगतें?
क्यूंकि भरोसे से बढ़कर
कुछ नहीं होता..
किसी का भरोसा जीतना
जिंदगी का ईनाम है
और किसी पर भरोसा करना
भरोसे का ही काम है.. !!

–> गोपाल के.

YE MAI HU-- GOPAL

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