कितना खाली लगता है
ये दिल कभी-कभी,
बिलकुल खोखला सा..
किसी सूखे दीमक लगे पेड़ के
खोखले तने की तरह..
बिलकुल खाली सा
इतना कमजोर
कि तेज हवा के झोंके से भी
टूट कर गिर पड़े,
और इतना गहरा सन्नाटा
जैसे गहरे कुंए में
पानी की परछाई में
सिर्फ अपनी ही तस्वीर
जैसे चाँद से झांकता कोई
दिल के वीरानेपन को
देखने की कोशिश कर रहा हो
पर दूर से
बहुत दूर से..
पास आने से डरता होगा
वो भी
खुशियों की तरह
या शायद
बेपरवाह हो.
कुछ भी हो..
मुझे क्या?
मै तो तब भी तन्हा था
तन्हा दिल लिए
अब भी तन्हा ही रहूँगा
कौन आएगा दूर करने इसको?
अब तो रात हो चली है,
अपना साया तक साथ छोड़ चला,
तो अब क्या उम्मीद
और किसका इंतज़ार?
ये दिल कभी-कभी,
बिलकुल खोखला सा..
किसी सूखे दीमक लगे पेड़ के
खोखले तने की तरह..
बिलकुल खाली सा
इतना कमजोर
कि तेज हवा के झोंके से भी
टूट कर गिर पड़े,
और इतना गहरा सन्नाटा
जैसे गहरे कुंए में
पानी की परछाई में
सिर्फ अपनी ही तस्वीर
जैसे चाँद से झांकता कोई
दिल के वीरानेपन को
देखने की कोशिश कर रहा हो
पर दूर से
बहुत दूर से..
पास आने से डरता होगा
वो भी
खुशियों की तरह
या शायद
बेपरवाह हो.
कुछ भी हो..
मुझे क्या?
मै तो तब भी तन्हा था
तन्हा दिल लिए
अब भी तन्हा ही रहूँगा
कौन आएगा दूर करने इसको?
अब तो रात हो चली है,
अपना साया तक साथ छोड़ चला,
तो अब क्या उम्मीद
और किसका इंतज़ार?
--गोपाल के.
3 comments:
इतने गहरे , तन्हाइयों में डूबे,सत्य की तपिश लिए एहसास
किन लम्हों ने दिया ........
बहुत दर्द ना सहा हो जिसने,वो ऐसा लिख ही नहीं सकता...
इन एहसासों को मैं साथ जीती हूँ भाई,
बहुत बढिया
बहुत खुबसूरत रचना है आपकी.......तन्हाई का बड़ी बेबाकी से चित्रण किया है आपना.........!!!
awsm gopal g..kya likha h apne...very nice..
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