क्या मिल जाता है किसी को रुलाने से?
क्यूँ खुश हैं वो मेरा दिल दुखाने से?
बस खुद से ही गिला है मुझको,
कोई शिकवा नहीं इस जमाने से॥
बिगड़ जाये तो उसको बना लीजिये,
बात बनती है बस बनाने से॥
मै हर गम हँसकर सह लूँगा उनके,
वो खुश हैं गर मुझे सताने से॥
नजर अपनी ही ओर पाई है,
देखता हूँ जब उन्हें बहाने से॥
रूठने का फिर मजा ही क्या?
मान जाये कोई जो मनाने से॥
दिल गमजदा हो गया खोकर किसी को,
तो खुश हो गया किसी को पाने से॥
--गोपाल के.
2 comments:
is kavya ke por-por me abaadh pyaar hai,manuhaar ka sukun hai,sab kuch sweekar hai,
isi ka naam pyaar hai.....
Bahut achha...
kaafi kuchh rashmi ji ne pehle hi keh diya...
bahut pyaari likhi hai...
keep it up !!
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