क्या होता?
अगर इस दामिनी की जगह
सरकार के
किसी बड़े नेता की
बहू या बेटी की
इज्ज़त लुटी होती
क्या होता तब?
अगर वो
यूँ ही बेबस और लाचार
ज़िन्दगी और मौत से जूझती
अश्रु भरे नयनों से
ये सवाल पूछती
कि कब पकडे जायेंगे
मेरे बलात्कारी?
मेरी अस्मत को
सरे राह लूटने वाले
मानवता के
चीथड़े उड़ाने वाले
कब मिलेगी उनको फांसी?
कब तक हम
अपनी इज्ज़त यूँ ही
गंवाती रहेंगी?
कब तक हम यूँ ही
छेड़खानी सहेंगी?
आखिर कब तक?
शायद
तब ना इतनी देर होती
ना ही इतनी अंधेर होती
अगर दामिनी की जगह
किसी नेता की
बहू या बेटी होती
तब तो शायद
दूसरे दिन ही
नया संशोधित क़ानून
सर्वसम्मत से
पास हो गया होता
क्यूँ कि उस नेता की
बहू या बेटी से
हर दल का नेता जुड़ा होता
जैसे अपने वेतन की
बढ़ोत्तरी के लिए
हर दल का
हर पक्ष का
हर विपक्ष का
नेता
एक ही सुर में
बोल रहा था
ऐसे ही
यहाँ भी सब नेता
एक ही सुर में बोलते
क्यूँ कि
उनको भी अपनी
बहू बेटी की इज्ज़त
प्यारी होती
मगर दामिनी?
वो तो एक आम लड़की थी
वो किसी नेता की
बहू या बेटी जो नहीं थी
तभी तो उसे
इन्साफ नहीं
मौत नसीब हुयी
वो भी ऐसी मौत
कि उसकी रूह
तड़पती रहेगी
जाने कब तक
खुद पर हुए
जुल्म के इन्साफ के लिए
और फिर से
ऐसे दुराचारी
बिना किसी डर के
किसी और दामिनी की
इज्ज़त तार-तार कर रहे होंगे
और हमारे नेता
अब अपनी बारी का
इंतजार कर रहे होंगे।
-गोपाल के .
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