लब जो सिल लिया अगर मैंने, कैसे सह पाओगे तुम वो सन्नाटा,
मेरी हर चीख तुमसे ये पूछेगी, पेड़ से डाल को तुमने क्यूँ काटा।
मौन कब तक रहोगे तुम बोलो, अपने लब को तो अब तुम्ही खोलो,
दिल नहीं सह सकेगा ज़ुल्म कोई, दिल में उठता है ज्वार और भाटा।।
--गोपाल के.
मेरी हर चीख तुमसे ये पूछेगी, पेड़ से डाल को तुमने क्यूँ काटा।
मौन कब तक रहोगे तुम बोलो, अपने लब को तो अब तुम्ही खोलो,
दिल नहीं सह सकेगा ज़ुल्म कोई, दिल में उठता है ज्वार और भाटा।।
--गोपाल के.
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